आर्णी जि़ यवतमाल के विख्यात संगीतकार एवं गजल गायक श्री सुधाकर कदम जो सन १९७५ से संगीत क्षेत्र से जुडे है अब महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे मे स्थित होकर अपनी आवाज एवं संगीत का जादू फैला रहे है़।
प्रख्यात कवि सुरेश भट के शब्द एवं सुधाकर कदम का सुर यानी गजल गायकी में इंद्रधनुष समान प्रतीत होता है। सन १९७० से सुधाकर कदम ने गजल गायन क्षेत्र में कदम रखा़ मराठी गजल गायन की तीन घंटे की महफील सजाकर कार्यक्रम करनेवाला महाराष्ट्र मे एक भी गीतकार नहीं था़ यह बात खुद गजलकार सुरेश भट कहते थे।
सुरेश भट एवं सुधाकर कदम इस जोडी ने मराठी गजल एवं गजल गायकी जनता तक पहुंचाने हेतु सन १९८० से १९८२ इन तीन वर्षों तक पूरे महाराष्ट्र का दौरा कर गजल के कार्यक्रम प्रस्तुत किए़ तभी से महाराष्ट्र में मराठी गजल क्या चीज है इसका पता चला़, लोकप्रियता बढने लगी़; तभी से कई गायकों ने गजल गायकी की ओर रुख किया़ पर आज भी मराठी गजल गायकी में सुधाकर कदम का स्थान मिल का पत्थर है़ इसलिए सुरेश भट जैसे महान कवि गजलकार उन्हें आद्य मराठी गज़लगायक कहते थे़। वह आज प्रमाणित होता नजर आ रहा है़
उर्दू, हिंदी, गजल अलग बात है वहॉं मराठी गजल प्रस्तुत करना कठिन था़ हिंदी, उर्दू, मराठी यह केवल भाषा नही है़। भाषा के साथ उसकी संस्कृति के अनुसार भाषाओं का रुप बदलता है। भाषा की विशेषताओं के चलते ही संस्कृति का आंगन फलफूल जाता है। गजल के संदर्भ में यह अधिक सटिक बैठता है़ क्योंकि, उस प्रकार ढंग कोई मराठी का नही अरबी उर्दू भी उस प्रकार के काव्यों के गर्भ के भीतर की नाल कहने का मतलब जो प्रकार अपनी भाषा में नहीं उसको आत्मसात करके सुधाकर कदम ने अपने कार्यक्रमों की प्रस्तुति कर सफलता के कदम चुमे है़। उन्होंने हिंदी उर्दू जैसी आसान राह न चुनते हुए मराठी गजल गायन का कांटों से भरा सफर अपना कर मराठी गजल गायन को नया आयाम देकर उसे लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाया जो कि एक ऐतिहासिक कार्य की पूर्तता करने जैसा है़। तथा इनकी मराठी गजले भी उर्दू की तरह मधुर एवं कर्ण प्रिय होती है।
मराठी गजल गाते हुए उसे शब्दों के अनुसार स्वर, साज, संगीत देना भी महत्वपूर्ण है। उसमे भी सुधाकर कदम ने अपने संगीत के बलबूते सफलता प्राप्त की। आज भी उनकी ‘हे तुझे अशावेळी लाजणे बरे नाही’ ‘झिंगतो मी कळेना कशाला’, ‘मस्तीत गीत गा रे’ ‘लोपला चंद्रमा लाजली पौर्णिमा’, ‘या एकले पणाचा छेडीत मी पियानो’ ऐसी गई मराठी गजले श्रोता गुनगुनाते है़ यह उनके संगीतकार के तौर पर सफलता पाने का गौरव है़। सन १९८७ में कक्षा १ से १० तक मराठी शालेय किताबों की कविताओं को संगीतबद्ध किया़। हाल ही में कक्षा एक एवं पांच के शालेय मराठी के किताब की कुछ कविताओ को संगीत दिया। जिसका ध्वनि मुद्रण पुणे के बाल चित्रवाणी में किया गया जिस की सीडी, कैसेट महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक महामंडल द्वारा निर्माण की है़ सुधाकर कदम द्वारा संगीतबद्ध किया गया ‘हे शिव सुंदर समर शालिनी महाराष्ट्र माउली’ यह जेष्ठ कवि कुसुमाग्रज द्वारा रचित महाराष्ट्र गीत महाराष्ट्र सरकार के गीत मंच विभाग द्वारा संपूर्ण महाराष्ट्र मे छात्रों को पढाये जाने आज संपूर्ण राज्य में सभी छात्र एवं सुरताल के साथ यह गीत गाते नजर आते है़।
उर्दू गजल गायन, संगीतबद्ध करने में सुधाकर कदम कम नहीं। उनका उर्दू गजलों पर आधारित ‘तसव्वूर’ नामक गजलों भरा नजराना पश्चिम महाराष्ट्र में धूम मचा रहा है़।
सुधाकर कदम का पूरा परिवार संगीत, सुरों का दीवाना है। भैरवी, रेणु यह दोनों पुत्रियां, गायिका एवं पुत्र निषाद जो कि, तबले का मास्टर है। तथा उन्होंने ‘तसव्वूर’ उर्दू गजल एवं ‘सरगम तुझ्याच साठी’ यह मराठी गीत गजलो का कार्यक्रम लोकप्रिय हुआ है़। सुधाकर कदम द्वारा मराठी गजलों को स्वर बद्ध करने एवं गायकी के योगदान के चलते उन्हे अखिल भारतीय गजल परिषद द्वारा ‘शान-ए-गजल’ पुरस्कार से गौरवान्वित किया गया है। जो कि उनके कार्यों की पहचान है। विख्यात कवि गजलकार सुरेश भट ने एक कार्यक्रम के दौरान सुधाकर कदम को ‘मराठी का मेहंदी हसन’ की उपाधि तक दे डाली थी़। सुधाकर कदम जो की बडी तन्मयता से गाते है तब शब्दों का अस्तित्व जान पडता है़। गुलाबी जख्मों पर धीरे-धीरे सुरुर चढता प्रतीत होता है॥ पहाडी आवाज, गजलों का चयन, शब्दों का ठोस उच्चार, उनकी विशेषता है़।
विदर्भ के आर्णी जैसे छोटे से नगर का अदनासा कलाकार महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में विदर्भ एवं आर्णी शहर का नाम मराठी गजल गायकी एवं स्वरबध्द गीतो से गौरवान्वित किया जा रहा है। जो हम विदर्भ वासियों के लिए सम्मान की बात है। तथा उनका नाम देश के कोने-कोने में चमके इसलिए विदर्भ वासियों द्वारा उन्हें हार्दिक शुभकामनाऍं ।
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