१३ नोव्हेंबर, २००९

मराठी गजलें भी उर्दू की तरह मधुर होती है : प्रभाकर पुरंदरे



साहित्य, कला तथा संगीत किसी जाति, भाषा या देश तक सीमित नही रहते बल्कि उनका प्रभाव मानवी रुचि के अनुरुप व्यापक होता है़ आजकल संगीत के क्षेत्र में गजल गाने और सुनने का काफी प्रचलन है । प्रायः गजल को लोग उर्दू संस्कृति की देन समझते है । गुलाम अली, मेहंदी हसन, जगजीत-चित्रासिंह आदि की हिंदी-उर्दू गजले तो वर्षों पहले ही संगीत शौकीनों के दिलों मे घर कर चुकी है । हिंदी-उर्दू के अलावा पंजाबी और गुजराती मे भी गजलें बरसों से गाई जा रही है । मराठी गायन क्षेत्र मे भी गजल तेजी से अपना प्रभाव जमा रही है । मराठी मे गजल सबसे पहले माधव पटवर्धन द्वारा लिखी गई थी, परंतु विद्वानों ने उसे गजल न मानकर भावगीत की संज्ञा दी । सुप्रसिध्द गजल गायक एवं लेखक सुरेश भट न मराठी गजलों को लोकप्रिय बनाने में विशेष भूमिका निभाई । उनके बाद अनिल कांबले, श्रीकृष्ण राऊत, उ़. रा़. गिरी, प्रदीप निफाडकर आदि गजल लेखकों के नाम आते है । फिलहाल मंगेश पाडगावकर श्रेष्ठ गजल रचयिता माने जाते है ।
पिछले दिनो शहर के जाल सभागृह मे इन श्रेष्ठ रचनाकारों की गजलें सुनने का अवसर मिला । गायक थे - सुधाकर कदम । सोलह दिसंबर की शाम लगभग चार घंटे तक चले मराठी गजल महफिल कार्यक्रम में कदम ने कई गजलों को अपने मधुर स्वरों में गाकर उपस्थित संगीत रसिकों को आनंदित किया । ‘कुठलेच फूल आता मजला पसंत नाही़’, ‘सूर्य केव्हाच अंधारला यार हो़’, ‘झिंगतो मी कळेना कशाला़’ ‘लोपला चंद्रमा, लाजली पौर्णिमा़,तथा ‘नको स्पर्श चोरू नको अंग चोरू.’ आदि गजलों को श्रोताओ ने खूब पसंद किया ।
गायक सुधाकर कदम के पिता महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के संगीत से संबद्ध रहे है । सो पिता से शास्त्रीय संगीत की उन्हें प्रेरणा मिलना स्वाभाविक है । गजल गायकी के क्षेत्र मे आने के पूर्व सुधाकरजी भाग्योदय आर्केस्ट्रा नामक संगीत मंडली को चलाते थे । भराडी नामक उनके गजलों की कैसेट काफी लोकप्रिय हुई है । हाथरस से प्रकाशित होने वाले संगीत मासिक संगीत के वे स्तंभकार है । इस पत्रिका के ‘नगमा ए-गजल’ कॉलम के अंतर्गत वे गजलों की स्वरलिपि लिखते है । गुलाम अली एवं मेहदी हसन जैसे वरिष्ठ गजल गायकों से गजलों से संस्कार आत्मसात करने वाले सुधाकर कदम ने बच्चों के लिए भी कई मधुर कविताओ को भी स्वयं संगीतबद्ध किया है । वे अपनी गाई गजलों को भी स्वयं ही संगीतबध्द करते है । बच्चों के लिए उन्होने झूला सीरिज के अंतर्गत तीन भागों में कविताओं को संगीतबद्ध कर कैसेट का रूप दिया है ।
सुधाकरजी से बातचीत के दौरान बताया कि, उन्होंने वर्‍हाडी कवि शंकर बडे की गजल को गाया था। गजल का पहला कार्यक्रम पुणे के गडकरी हाल में हुआ था । यह कार्यक्रम काफी स्मरणीय था, क्योंकि इसकी अध्यक्षता गजल गायक एवं रचयिता सुरेश भट ने ही की थी । कदम बताते है कि इस कार्यक्रम में संगीत प्रेमियों की उपस्थिति से हाल खचाखच भर गया था । लोगों ने इस कार्यक्रम को खूब पसंद किया ।
मराठी गजलों मे कई बार उर्दू भाषा के क्लिष्ट शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है, इससे श्रोताओ को समझने में कठिनाई तो महसूस होती होगी? इस सवाल के जवाब मे कदम बताते है कि भाषा संबंधी कठिनाइया तो सभी प्रकार की गजलों में है । लेकिन जहां तक शुध्द मराठी गजलों का सवाल है कुछ मराठी गजल रचनाकारों ने अत्यंत सरल एवं प्रभावी शब्दों का प्रयोग किया है । सुरेश भट, श्रीकृष्ण राऊत तथा ज्ञानेश वाकुडकर आदि इसके श्रेष्ठ उदाहरण है -
‘लोपला चंद्रमा लाजली पौर्णिमा,
चांदण्यांनी तुझा चेहरा पाहिला.’ (श्रीकृष्ण राऊत)
‘नको स्पर्श चोरु, नको अंग चोरू
सखे पाकळ्यांचे नको रंग चोरू.(ज्ञानेश वाकुडकर)
तथा
‘कुठलेच फुल आता मजला पसंत नाही
कळते मला रे हा माझा वसंत नाही.’ (सुरेश भट)

आदि प्रसिद्ध गजलों में सरल और प्रभावी मराठी शब्दों का प्रयोग हुआ है ।
महाराष्ट्र और उसके बाहर लगभग ढाई सौ से ज्यादा गजल कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित करने वाले सुधाकर कदम का मानना है कि मराठी गजलों का भविष्य काफी उज्ज्वल है । लोग शहरों में नहीं, बल्कि गांवो में भी इसे पसंद कर रहे है । उन्होने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि जितनी गजले आजकल मराठी मे लिखी जा रही है उतने गायक तैयार नहीं हो पा रहे है । उन्होने मराठी गजल गायन के बारे में बेहिचक बताया कि इसमें उर्दू गजलों की तरह नजाकत होती है ।
कदम, मराठी के अलावा हिंदी गजलें भी गाते है । इंदौर के अपने २५ वे कार्यक्रम में उन्होंने कुछ हिंदी गजलें गाई थी । उन्होंने यह स्वीकार किया कि मराठी श्रोता उर्दू श्रोताओं की तरह दाद नहीं देते । ऐसा विशेष रुप से महाराष्ट्र से बाहर के कार्यक्रमों के जरिए प्रयत्न कर रहे है । महाराष्ट्र मे पुणे, कोल्हापुर, नांदेड, सांगली, अमरावती, औरंगाबाद, जलगांव आदि जगह उनके कार्यक्रम को संगीतप्रेमियों का खूब समर्थन मिला है । सुधाकर कदम की गजल गायकी कई विशिष्टताओं से परिपूर्ण है । उन्होंने गजलों को शास्त्रीय पध्दति में ढालने का प्रया किया है । यही कारण है कि उनके द्वारा गाई गजलें सामायिक नहीं वरन सदाबहार बन गई है । जिस तरह उर्दू गजलों में गायन के पूर्व गायक कुछ एक शेर पेश करते है । ठीक उसी तरह सुधाकर जी भी मराठी गजल शुरु करने के पूर्व रुबाई का सफल प्रयोग करते है । महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के पच्चीस-तीस हजार आबादी वाले आर्णी नामक कस्बे में रहने वाले सुधाकर कदम एक अच्छे सरोद वादक भी है ।
सोनम मार्केटिंग एंड कम्यूनिकेशन द्वारा आयोजित तथा डी़ एड़ एच़ सेचरॉन द्वारा प्रायोजित इस अनोखी गजल निशा के दूसरे आकर्षण थे कलीम खान ।संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन अपनी मधुर आवाज और विशिष्ट अंदाज में कर कलीम खान ने उपस्थित मराठी भाषियों का दिल जीत लिया । वे एक अच्छे कवि एवं गजल रचयिता भी है । कलीम खान ने ‘कुंकू’ शीर्षक वाली अपनी अत्यंत संवेदनशील कविता सुनाकर श्रोताओं को हतप्रभ कर दिया । तबले की संगत रमेश उइके (नागपुर) ने की जबकि सारंगी वादन मोइनुद्दीन (इंदौर) ने किया ।

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